दूसरे की निंदा करिए और अपना घड़ा भरिए

दूसरे की निंदा करिए और अपना घड़ा भरिए
हम जाने-अनजाने अपने आसपास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं: जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नही होता। निंदा रस का स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है सो लगभग हर व्यक्ति इस स्वाद लेने को आतुर रहता है।
 वास्तव में निंदा एक ऐसा  मानवीय गुण है जो सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है। यदि हमें ज्ञान हो जाये कि पर निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है तो हम इस पाप से आसानी से बच सकते हैं। 
 राजा पृथु एक दिन सुबह सुबह घोड़ों के तबेलें में जा पहुंचे। तभी वहीं एक साधु भिक्षा मांगने आ पहुंचा। सुबह सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुए बिना विचारे तबेलें से घोडें की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिए गए। पृथु ने जब जंगल में देखा एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है उन्होंने देखा कि यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोडें दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गए और साधु से बोले "महाराज! आप हमें एक बात बताइए यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं न ही तबेला है तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई !" साधु ने कहा " राजन्! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है अब समय आने पर यह लीद उसी को खाना पड़ेगी। यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने साधु से प्रश्न किया हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी पर यह तो बहुत अधिक हो गई? साधु ने कहा "हम किसी को जो भी देते है वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौट कर आ जाता है, यह उसी का परिणाम है।" यह सुनकर पृथु की आँखों में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले "महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए मैं आइन्दा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा।" कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिए! जिससे मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ!" राजा की ऐसी दुखमयी हालात देख कर साधु बोला- "राजन्! एक उपाय है आपको कोई ऐसा कार्य करना है जो देखने मे तो गलत हो पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे तो आपकी निंदा करेंगे जितने ज्यादा लोग आपकी निंदा करेंगे आपका पाप उतना हल्का होता जाएगा। आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा। 
यह सुन राजा पृथु ने महल में आ काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह  से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गए। सुबह सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि कैसा राजा है कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है क्या यह शोभनीय है ??  आदि आदि!! निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे।
इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुंचे तो लीद का ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से बोले "महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहाँ गायब हो गया!!" 
साधू ने कहा "यह आप की अनुचित निंदा के कारण हुआ है राजन्। जिन जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है, आप का पाप उन सबमे बराबर बराबर बट गया है। 
  जब हम किसी की बेवजह निंदा करते है तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है तथा हमे अपना किये गए कर्मो का फल तो भुगतना ही पड़ता है, अब चाहे हँस के भुगतें  या रो कर। हम जैसा देंगें वैसा ही लौट कर वापिस आएगा!      
       किसी की उन्नति, वैभव को देखकर ईर्ष्या मत करो क्योंकि आपकी ईर्ष्या से दूसरों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा मगर आपका स्वभाव जरूर बिगड़ जाएगा। किसी दूसरे की समृद्धि या उसकी किसी अच्छी वस्तु को देखकर यह भाव आना कि यह इसके पास ना होकर मेरे पास होनी चाहिए थी, बस इसी का नाम ईर्ष्या है।
         ईर्ष्या सीने की वो जलन है, जो पानी से नहीं अपितु सावधानी से शांत होती है। ईर्ष्या की आग बुझती अवश्य है किन्तु बल से नहीं, विवेक से। ईर्ष्या वो आग है जो लकड़ियों की नहीं अपितु आपकी खुशियों को जलाती है।
         अत: संतोष और ज्ञान रूपी जल से इसे और अधिक भड़कने से रोको ताकि आपके जीवन में खुशियाँ नष्ट होने से बच सकें। जलो मत साथ- साथ चलो। क्योंकि खुशियाँ जलने से नहीं अपितु सद्भाव रखने और सदमार्ग पर चलने से मिला करती है।
मालिक ने हमको एक मुंह और दो कान क्यों दिए हैं ? शायद इसलिए कि हम बोलें कम और सुनें ज्यादा । जब हम सुनेंगे अधिक तो हम को वो सब कुछ भी जानने को मिल जायेगा जो हमारी जानकारी में नहीं था ।इसलिए बोलो कम सुनो अधिक । जो कम बोलता है वो हमेशा सुखी रहता है जो आनंद सुनने में है वो सुनाने में नहीं । सुप्रभातम्  ।🙏🙏

हमारे समाज में हर माँ-बाप अपनी बेटी की शादी

हमारे समाज में हर माँ-बाप अपनी बेटी की शादी अपनी हैसियत के अनुसार बड़ी धूम-धाम से करता है लेकिन ससुराल पक्ष की नुक्ताचीनी कभी खत्म नहीं होती। एक पिता द्वारा बेटी को लिखित में बेटी को दिया गया संस्कार-परक संदेश----
विवाह के बाद, पहली बार मायके आयी बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला।
सम्पूर्ण सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया, वापिस ससुराल जाते समय, पिता ने बेटी को एक अति सुगंधित अगरबत्ती का पुडा दिया, और कहा, की, बेटी तुम जब ससुराल में पूजा करने जाओगी तब यह अगरबत्ती जरूर जलाना,
माँ ने कहा, बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है, तो  भला कोई अगरबत्ती जैसी चीज  देता है  ?
 पिता ने झट से जेब मे हाथ डाला और जेब मे जितने भी रुपये थे वो सब बेटी को दे दिए,
ससुराल में पहुंचते ही सासु माँ ने बहु के मात-पिता ने बेटी को बिदाई में क्या दिया यह देखा, तो वह अगरबत्ती का पुडा भी दिखा, सासु माँ ने मुंह बना कर बहु को बोला कि , कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना,
 सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी तो वो अगरबत्ती का पुडा खोला, उसमे से एक चिट्ठी निकली,
लिखा था....
बेटा यह अगरबत्ती स्वतः जलती है, मगर  संपूर्ण घर को सुगंधित  कर देती है, इतना ही नही , आजु-बाजू के पूरे वातावरण को भी अपनी महक से सुगंधित एवम प्रफुल्लित कर देती है....!!
हो सकता है की तूम कभी पति से कुछ समय के लिए रुठ जाओगी, या कभी अपने सास-ससुरजी से नाराज हो जाओगी, कभी देवर या ननद से भी रूठोगी, कभी तुम्हे किसी से बाते सुननी भी पड़ जाए, या फिर कभी अडोस-पड़ोसियों के वर्तन पर तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट ध्यान में रखना,
अगरबत्ती की तरह जलना, जैसे अगरबत्ती स्वयं जलते हुए पूरे घर और सम्पूर्ण परिसर को सुगंधित और प्रफुल्लित कर ऊर्जा से भरती है, ठीक उसी तरह तुम स्वतः सहन कर तेरे ससुराल को अपना मायका समझ कर सब को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित और प्रफुल्लित करना...।
बेटी चिट्ठी पढ़कर फफकर रोने लगी, सासू मां लपककर आयी, पति और ससुरजी भी पूजा घर मे पहुंचे जहां बहु रो रही थी।
"अरे हाथ को चटका लग गया क्या?, ऐसा पति ने पूछा।
"क्या हुआ यह तो बताओ, ससुरजी बोले।
सासूमाँ आजु बाजु के  सामान में कुछ है क्या यह देखने लगी,
तो उन्हें  पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में  लिखी हुई  चिठ्ठी नजर आयी, चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहु को गले से लगा लिया, और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दी, चश्मा ना पहने होने की वजह से, चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा।
सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया।
सासु माँ बोली अरे, यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है , यह मेरी बहु को मिली हुई सबसे अनमोल भेंट है, पूजा घर के बाजू में में ही इसकी फ्रेम होनी चाहिए,
और फिर सदैव वह फ्रेम अपने शब्दों से, सम्पूर्ण घर, और अगल-बगल के वातावरण को अपने अर्थ से महकाती रही, अगरबत्ती का पुडा खत्म होने के बावजूद भी.......
 *क्या आप भी ऐसे संस्कार अपनी बेटी को देना चाहेंगे ........??*
 *कठिनाइयाँ नहीं होतीं,तो जीवन में सुखचैन कहाँ होता, रिश्ते नहीं होते,तो मिलने को दिल बेचैन कहाँ होता, यदि चुनौतियां नहीं होतीं,तो मुकाबला कहाँ होता, दिन में थकान नहीं होती,तो रात को चैन कहाँ होता!*                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 
*यदि हमने हमारे मन ,मस्तिष्क और हृदय में किसी की छवि "नकारात्मक रूप में घर कर जाती है " तो फिर उसकी "अच्छाइयों को भी "*   *हम  "बुराईयों की ही नजर से "  देखने लग जाते हैं ।।*सुप्रभातम् 🙏🙏

जिस तरह बहती नदी लौटकर वापस नहीं

1*🙏🌹जय श्री महाकाल की🌹🙏*

जिस तरह बहती नदी लौटकर वापस नहीं आती,उसी प्रकार दिन और रात मनुष्य की आयु लेकर चले जाते है जो कभी वापस नहीं आते।
अतः भूतकाल की अच्छी यादों को जीवन में संजोये रखकर वर्तमान में जो भी पल ख़ुशी के मिलें खुश होकर जियें