भारतीय संस्कृति का परिचायक है ‘होली’


भारतीय संस्कृति का परिचायक है       होली
होली को लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रुप में जोड़कर, पूतना दहने के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था ओर उनकी राख को अपने शरीर पर मल कर नृत्य किया था। तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है ||                                                                                      
होलिकाका दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें असत्य पर सत्य की विजयऔर दुराचार पर सदाचार की विजयका उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यतः आनंदोल्लास तथा भाईचारे का त्यौहार है। यह लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता दुश्मनी को भूलकर एकदूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। रागरंग का यह लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है। किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है:
"
नफ़रतों के जल जाएं सब अंबार होली में,
गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।
बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे,
गले मिलने आ जाएं वे इस बार होली में