नशा मुक्त भारत अभियान

“कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नहीं मन चाहिये ,साधन सभी जुट जायेंगे संकल्प साधन चाहिये ” यह मात्र शब्द नहीं बल्कि एक महिला के जीवन का सिद्धांत है। जिन्होंने बीड़ा उठाया है समाज व उसकी नकारात्मक सोच को बदलने का, जिसे अगर समय रहते नहीं बदला गया तो निश्चित तौर पर वह वर्तमान और भावी पीढ़ी को खोखला बना देगी। हम बात कर रहे हैं गाज़ियाबाद की ममता गुप्ता की जो “नशा मुक्त भारत अभियान” के माध्यम से देश के कई क्षेत्रों में समाज के हर वर्ग के लोगों में व्याप्त नशे की लत को जड़ से मिटाने का सफल प्रयास कर रही हैं।

सोलह साल से इस दिशा में काम करते हुऐ ममता ने पाया कि नशा समाज में स्लो पॉइज़न की तरह काम कर रहा है। आज नशा चाहे शराब का हो या ड्रग्स का यह स्कूल से लेकर कॉलेज तक व शहर से लेकर गांव तक हर तरफ अपने पॉव पसार रहा है। इंसान गरीब हो या अमीर इसे कोई फर्क नहीं पड़ता नशा हर एक के परिवार को सिर्फ मिटा रहा है। ममता ने अपने आस-पास ऐसे बहुत से बच्चे, युवक व युवतियां देखे जो नशा करने के साथ गलत काम भी करने लग गए थे। इस दृश्य ने उनकी अंतरात्मा को झकझोड़ कर रख दिया, तब उन्होंने निश्चय किया कि वह जितना मुमकिन हो सके समाज को नशा मुक्त बनायेंगी।

इसी उद्येश्य के साथ उन्होंने गांव-गांव घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास शुरू कर दी। जैसा की हर अच्छे काम में बाधाएं आती हैं यह काम भी इतना आसान नहीं था। लोगों ने इनका मज़ाक बनाया और समाज में अच्छी पैठ रखने वाले लोगों ने इन पर तंज़ भी कसे। लेकिन अडिग विचारों की धनी ममता अपने मकसद से बिलकुल भी नहीं डगमगाई और नशे से पीड़ित लोगों व उनके परिवारों की कॉउंसलिंग का काम शुरू किया। क्योंकि उनका मानना था कि मात्र दवा से कोई नशा नहीं छूटता है। ममता बताती हैं कि “नशा छुड़ाने के लिये लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना जरूरी है। कॉउन्सिलिंग के बाद और परिवार के सहयोग से लोग नशा छोड़ भी देते हैं लेकिन चुनौती नशा छोड़ने के बाद आती है जब उनका मन इस तरफ लगातार भागता है तब हम उन्हें “जल चिकित्सा” के द्वारा उनके मन को स्थिर रखना सिखाते हैं। इस चिकित्सा में उन्हें नशे की तलब लगने पर 3-4 गिलास पानी पीने और माथे पर गीली पट्टी रख मन में ओम का उच्चारण करने को कहते हैं”। इस प्रक्रिया से अभी तक कई लोगों ने अपनी नशे की लत को जड़ से ख़त्म किया है।

ऐसा ही एक अनुभव केनफ़ोलिओज़ की टीम से शेयर करते हुऐ ममता ने बताया कि जब वह गौतम बुद्ध जिले के मिर्ज़ापुर गांव के दौरे पर थी तब वहाँ के प्रधान के भाई जो 8-10 बंडल बीड़ी रोज़ पीता था, पर हमारी बातों का काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा और उसने हमसे यह वादा किया कि वो आगे से नशा नहीं करेगा। इतना ही नहीं उसने प्रेरणा लेते हुए अपने ही गांव में 30 से 40 प्रतिशत शराब की बिक्री भी कम करायी।

आगे अपने विचार व्यक्त करते हुए ममता कहती हैं कि “आज हमारे देश में जगह-जगह विदेशी संस्कृति से प्रभावित होकर हुक्का बार चल रहे हैं जहाँ युवाओं को हर तरह की ड्रग्स परोसी जा रही है। सरकार की भी अपनी एक सीमा है हर समस्या का ठीकरा हम सरकार पर नहीं फोड़ सकते, अगर हमें इस परेशानी को जड़ से मिटाना है तो हर नागरिक को देश को अपना घर समझना पड़ेगा और एक साथ इस दिशा में आगे बढ़ना होगा।

ममता के पति वेद राम गुप्ता भी एक समाजसेवी हैं और बागपत में काफी सालों से एक स्कूल चला रहे हैं जिसमे 70 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। ममता ने 2013 में “माया ममता चेरिटेबल ट्रस्ट” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज को नशे के खिलाफ जागरूक करना है।  वह महीने में 2 से 3 प्रोग्राम करती हैं और इसका पूरा खर्चा स्वयं ही वहन करती हैं क्योंकि वह इन कामों को करने के लिये किसी भी प्रकार का दिखावा पसंद नहीं करती हैं।

ममता का मानना है कि 100 में से यदि एक आदमी भी नशा छोड़ता है तो एक घर बर्बाद होने से बच जाता है। इसे वह अपनी एक बड़ी सफलता मानती हैं। समय के साथ उनके इस अभियान में 10 हज़ार से ज्यादा वोलेंटियर जुड़ चुके हैं और सभी के प्रयासों से आज 1 हज़ार से ज्यादा लोग नशा छोड़ चुके हैं। ममता को उनके द्वारा किये जा रहे इस उत्कृष्ट कार्य के लिये कई अवार्ड्स से सम्मानित भी किया गया है।

आज समाज में जो बच्चे नशा कर रहे हैं उसके लिये ममता उनके माता-पिता को दोषी मानती हैं। आज माँ बाप व बच्चों के बीच व्यस्तता के चलते लगाव कम होता जा रहा है, जिसके कारणवश बच्चों का सही मार्ग दर्शन नहीं हो पा रहा है। यह सब देख कर ममता को बेहद पीड़ा होती हैं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी हैं और वह कहती हैं कि “माना अंधेरा घना है, लेकिन दीया जलाना कहाँ मना है।”